दतिया/मातृ शक्ति की आराधना नवरात्र पर्व में देश के विभिन्न मंदिरों पर भक्तों का तांता लगा हुआ है। इस मौके पर आपको मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा के मंदिर के बारे में बता रहे हैं। इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। यहां पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी हो या फिर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ही क्यों न हो सभी ने माता का आशीर्वाद प्राप्त किया।। ऐेसा माना जाता है कि इस स्थान पर आने वाले की मुराद जरूर पूरी होती है, उन्हे राजसत्ता का सुख जरूर मिलता है।
राजसत्ता सुख दिलाने वाला है मां पीतांबरा सिद्धपीठ, 1935 में हुई थी स्थापना
6 वर्ष पहले
राजसत्ता सुख दिलाने वाला है मां पीतांबरा सिद्धपीठ, 1935 में हुई थी स्थापना|धर्म
रिलिजन डेस्क. मातृ शक्ति की आराधना नवरात्र पर्व में देश के विभिन्न मंदिरों पर भक्तों का तांता लगा हुआ है। इस मौके पर आपको मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा के मंदिर के बारे में बता रहे हैं। इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। यहां पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी हो या फिर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ही क्यों न हो सभी ने माता का आशीर्वाद प्राप्त किया।। ऐेसा माना जाता है कि इस स्थान पर आने वाले की मुराद जरूर पूरी होती है, उन्हे राजसत्ता का सुख जरूर मिलता है।
1) मंदिर के बारे में महत्वपूर्ण बातें
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है। इसी रूप में भक्त उनकी आराधना करते हैं। राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर गुप्त पूजा अर्चना करते हैं।
मां पीतांबरा शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी है और राजसत्ता प्राप्ति में मां की पूजा का विशेष महत्व होता है।
इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। ये चमत्कारी धाम स्वामीजी के जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है।
भक्तों को मां के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से ही होते हैं। मंदिर प्रांगण में स्थित वनखंडेश्वर महादेव शिवलिंग को महाभारत काल का बताया जाता है।
इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। ये चमत्कारी धाम स्वामीजी के जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है।
भक्तों को मां का दर्शन एक छोटी-सी खिड़की से होता है। मंदिर प्रांगण में स्थित वनखंडेश्वर महादेव शिवलिंग को महाभारत काल का बताया जाता है।
सिंधिया घराने के लोगों के लिए तो मंदिर परिसर में एक विशेष गेस्टहाउस बना हुआ है।
व्यक्तिगत अनुष्ठान के दौरान इस परिवार के लोग मंदिर परिसर में रुकते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि कई वर्ष पहले राजमाता विजयाराजे नवरात्र के दौरान पूरे नौ दिन साधना करती थीं।
माधवराव सिंधिया, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह, उमा भारती, वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी मां पीतांबरा शक्ति बगलामुखी की कृपा से राजनीति की ऊंचाइयों के शिखर को छुआ है।
इसी तरह मुबई बम कांड के दोषी संजय दत्त भी अपने उपर चल रहे मुकदमे के दौरान मां के दरबार में मत्था टेकने आए थे।
बात उन दिनों की है जब भारत और चीन का युद्ध 1962 में प्रारंभ हुआ था। बाबा ने फौजी अधिकारियों एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर देश की रक्षा के लिए मां बगलामुखी की प्रेरणा से 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था।
परिणामस्वरूप 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। उस समय यज्ञ के लिए बनाई गई यज्ञशाला आज भी है। यहां लगी पट्टिका पर इस घटना का उल्लेख है।
जब-जब देश के ऊपर विपत्तियां आती हैं तब-तब कोई न कोई न कोई गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ-हवन अवश्य ही कराते हैं। मां पीतांबरा शक्ति की कृपा से देश पर आने वाली बहुत सी विपत्तियां टल गई हैं।
इसी प्रकार सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मां बगलामुखी ने देश की रक्षा की। सन् 2000 में कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच पुनः युद्ध हुआ।
तब भी कुछ विशिष्ट साधकों ने मां बगलामुखी की गुप्त रूप से पुनः साधनाएं एवं यज्ञ किए जिससे दुश्मनों को मुंह की खानी पड़ी। ऐसा कहा जाता है कि यह यज्ञ तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर कराया गया था। के द्वारा की गई। ये चमत्कारी धाम स्वामीजी के जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है।
भक्तों को मां के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से ही होते हैं। मंदिर प्रांगण में स्थित वनखंडेश्वर महादेव शिवलिंग को महाभारत काल का बताया जाता है।
इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। ये चमत्कारी धाम स्वामीजी के जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है।
भक्तों को मां का दर्शन एक छोटी-सी खिड़की से होता है। मंदिर प्रांगण में स्थित वनखंडेश्वर महादेव शिवलिंग को महाभारत काल का बताया जाता है।
सिंधिया घराने के लोगों के लिए तो मंदिर परिसर में एक विशेष गेस्टहाउस बना हुआ है।
व्यक्तिगत अनुष्ठान के दौरान इस परिवार के लोग मंदिर परिसर में रुकते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि कई वर्ष पहले राजमाता विजयाराजे नवरात्र के दौरान पूरे नौ दिन साधना करती थीं।
माधवराव सिंधिया, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह, उमा भारती, वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी मां पीतांबरा शक्ति बगलामुखी की कृपा से राजनीति की ऊंचाइयों के शिखर को छुआ है।
इसी तरह मुबई बम कांड के दोषी संजय दत्त भी अपने उपर चल रहे मुकदमे के दौरान मां के दरबार में मत्था टेकने आए थे।
बात उन दिनों की है जब भारत और चीन का युद्ध 1962 में प्रारंभ हुआ था। बाबा ने फौजी अधिकारियों एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर देश की रक्षा के लिए मां बगलामुखी की प्रेरणा से 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था।
परिणामस्वरूप 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। उस समय यज्ञ के लिए बनाई गई यज्ञशाला आज भी है। यहां लगी पट्टिका पर इस घटना का उल्लेख है।
जब-जब देश के ऊपर विपत्तियां आती हैं तब-तब कोई न कोई न कोई गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ-हवन अवश्य ही कराते हैं। मां पीतांबरा शक्ति की कृपा से देश पर आने वाली बहुत सी विपत्तियां टल गई हैं।
इसी प्रकार सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मां बगलामुखी ने देश की रक्षा की। सन् 2000 में कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच पुनः युद्ध हुआ।
तब भी कुछ विशिष्ट साधकों ने मां बगलामुखी की गुप्त रूप से पुनः साधनाएं एवं यज्ञ किए जिससे दुश्मनों को मुंह की खानी पड़ी। ऐसा कहा जाता है कि यह यज्ञ तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर कराया गया था।