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दतिया:- नव दुर्गा स्पेशल:-बुंदेलखंड की वीर भूमि पर स्थित है, बुंदेला वीर दिमान ओरछा कुँवर

बुंदेलखंड की वीर भूमि पर स्थित है, बुंदेला वीर दिमान ओरछा कुँवर

हरदौल जू की जन्मस्थली एवं महाराज वीरसिंह देव की कर्मभूमि के नाम से जाना जाने वाला शहर है दतिया । दतिया को मिनी बृन्दावन भी कहा जाता है। कहते हैं दतिया शिशुपाल के बड़े भाई दंतबक्र की राजधानी भी रही है। यहाँ स्वयं यदुवंश शिरोमणि भगवान वासुदेव नंदन श्री कृष्ण ने दतिया आकर दंतबक्र का संहार किया था। इसीलिए दतिया को मिनी बृन्दावन के नाम से जाना जाता है। वैसे तो दतिया पूर्व से साधु संतों एवं भक्तों की नगरी रही है,पर 1934 से यह स्थान और विशेष स्थान हो गया। अब दतिया की मां पीताम्बरा की नगरी के रूप मे समूचे विश्व में एक खास पहचान है। दतिया के बनखण्डेश्वर महादेव के मंदिर पर एक संत आकर अपना ठिकाना जमाते हैं और शमशान के बीच कोपीन वस्त्र धारक संत उसी जगह सन 1935 में मां बगलामुखी की स्थापना कर दतिया नगर को मां पीताम्बरा की नगरी दतिया की नई पहचान का निर्माण करते हैं। वह संत थे विश्व गुरु श्री स्वामी जू महाराज। आज पीताम्बरा मंदिर विश्व पटल पर एक विशेष तांत्रिक शक्ति के रूप में अपना स्थान रखता है। मां पीताम्बरा को बगलामुखी देवी के रूप में जाना जाता है, यह देवी शत्रु संहारिणी देवी के रूप में भी जानी जाती हैं। वैसे तो बगलामुखी मैया के देश में कई स्थान हैं पर विशेष तंत्र मंत्र पूजा से स्थापित दतिया की पीताम्बरा पीठ को सियासत की देवी के रूप में जाना जाता है,इसीलिए तो देश विदेश के सबसे ज्यादा राजनेता माई के चरणों में ढोक लगाते हैं,नेहरू से लेकर प्रियंका तक,मुखर्जी से लेकर अमित शाह तक देश के लगभग सभी राजनेता माई के दर पर अपना मत्था टेक चुके हैं। यदि हम शक्ति पीठों की बात करें तो 52 शक्ति पीठें हैं लेकिन पीताम्बरा पीठम के नाम से विख्यात यह 53 वी शक्तिपीठ की एक खास पहचान है।यह पीठ साधना पीठ है, मंदिर परिसर का शांत माहौल न कोई हल्ला गुल्ला न ही कोई शोर गोल घण्टो की नाद भी यहां नहीं होती है।इस मंदिर में सम्पूर्ण प्रांगण में साधना रत साधक जरूर दिख जाते हैं। इस स्थान की एक और विशेषता है कि यहां किसी प्रकार की पंडा प्रथा नहीं है।यहाँ साधक अपने मनानुरूप साधना कर सकता है। कहा जाता है माई ऋद्धि सिद्धि की दाता हैं। मंदिर परिसर में भगवान बनखण्डेश्वर महादेव का प्राचीन महाभारत कालीन स्थान भी है। बताते हैं कौरव पांडवों के गुरु द्रोण पुत्र द्रोणी यानी अस्वतथाम इस स्थान पर आकर साधना करते हैं। एकमात्र धूमावती माई का स्थान भी यहां है। प्रति शनिवार हजारों की सँख्या में श्रद्धालु धूमावती मैया के दर्शन करते हैं।वैसे तो दतिया में देवी के पूरे 9 स्थान हैं। जिनमें पीताम्बरा पीठ,विजय काली इन्हें दतिया शहर की कुलदेवी के रूप में जाना जाता है, ओझा जी की माता अपने पुजारी की बात रखने के लिए पानी के अंदर बटेर का रूप धारण करने जानी जाती हैं,रतनगढ़ मैया की विषहर्ता देवी के रूप में खास पहचान है। खैरी वाली माता भक्तों की रक्षक देवी हैं,रामगढ़ की माता दिन में तीन स्वरूप बदलने के लिए जानी जाती हैं, पँचमकवि की टोरिया पर स्थित तारा माता दस महाविद्याओं में से एक हैं।तारा माता की स्थापना भी स्वामी जी महाराज ने ही कि थी।

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