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सूर्यवंशी कुशवाहा ( कच्छवाहा ) राजपूतों का सम्पूर्ण इतिहास

सूर्यवंशी कुशवाहा ( कच्छवाहा ) राजपूतों का सम्पूर्ण इतिहास

गोत्र – गौतम, मानव मानव्य (राजस्थान में) पहले कश्यप गोत्र था
प्रवर – गौतम (उ० प्र० में) वशिष्ठ, वार्हस्पत्य मानव
कुलदेवी – जमुआय (दुर्गा – मंगला)/ जमवाय माता
वेद – सामवेद
शाखा – कौथुमी (उ० प्र० में) तथा माध्यन्दिनी (राजस्थान में)
सूत्र – गोभिल,गृहसूत्र
निशान – पचरंगा ध्वज (पहले सफ़ेद ध्वज था जिसमे कचनार का वृक्ष था)
नगाड़ा – यमुना प्रसाद
नदी – सरयू
छत्र – श्वेत
वृक्ष – वट (बड़)
पक्षी – कबूतर
धनुष – सारंग
घोडा – उच्चैश्रव
इष्ट – रामचन्द्र
प्रमुख गद्दी – नरवरगढ़ और जयपुर
गायत्री – ब्रम्हायज्ञोपवीत
पुरोहित – खांथडिया पारीक (राजस्थान में) पहले गंगावत थे
कछवाहा अयोध्या राज्य के सूर्यवंश की एक शाखा है। कुश के एक वंशज कुरम हुए, जिनके कुछ वंशज कच्छ चले गए और कछवाहे कहे जाने लगे जिसके नाम पर कछवाहा कूर्मवंशी भी कहलाये। नरवरगढ़ और ग्वालियर के राजाओं के मिले कुछ संस्कृत शिलालेखों में इन्हे कच्छपघात या कच्छपारी कहा गया है। जनरल कन्निंघम इन शिलालेखों को मान्यता देते हुए कहता है की कच्छपघात या कच्छपारी या कच्छपहन का एक ही अर्थ है – कछुओं को मारने वाला।
कुछ लोगों का अनुमान है कछवाहों की कुलदेवी का नाम पहले कछवाही (कच्छपवाहिनी) था जिसके कारण ही इस वंश का नाम कछवाहा पड़ा।
उपरोक्त सभी मत मनगढंत है क्यूंकि कछुवे मारना राजपूतों के लिए कोई गौरव की बात नहीं है जो कि इनके नाम का कारण बनता। कुशवाहा नाम भी कछवाहों के किसी प्राचीन शिलालेख या ग्रन्थ में नहीं मिलता। वास्तव में ये भगवन राम के द्वितीय पुत्र कुश के ही वंशज हैं। कर्नल टॉड शैरिंग, इलियट व क्रुक ने भी इसी मत को मान्यता दी है। राम के बाद कुश ने अपनी राजधानी कुशावती को बनाया था, परन्तु किसी दुःस्वप्न का विचार आने पर उन्होंने उसे छोड़ फिर अयोध्या को अपनी राजधानी बना लिया था। अयोध्या का इन्होने ही पुनरुद्वार किया था। (रघुवंश, सर्ग 16) इसके अंतिम राजा सुमित्र के पुत्र कूर्म तथा कूर्म के पुत्र कच्छप हुए। कच्छप के पिता कूर्म के कारण ही कछवाहों की एक उपाधि कूर्म भी है।
कछवाहे पहले परिहारों के सामंत के रूप में रहे थे, परन्तु परिहारों के निर्बल हो जाने पर ये स्वतंत्र शासक बन गए। लक्ष्मण के पुत्र वज्रदामा कछवाहा ने विजयपाल प्रहार से ग्वालियर का दुर्ग छीनकर वहां के स्वतंत्र स्वामी बन गए (ग्वालियर का वि. सं. 977 और 1034 का शिलालेख)
वज्रदामा के पुत्र कीर्तिराज के वंशधन तो क्रमशः मूलदेव, देवपाल, पधपाल और महापाल, कुतबुद्दीन ऐबक के शासन काल तक ग्वालियर के राजा बने रहे और छोटे पुत्र सुमित्र के वंशज क्रमशः मधु, ब्रम्हा, कहान, देवानिक, ईशसिंह – ईश्वरीसिंह, सोढदेव, दैहलराय (दुर्लभराज या ढोला राय हुए। जिनकी एक रानी का नाम मरवण था।) ढोला राय दौसा (जयपुर) के बडगूजर क्षत्रियों के यहाँ ब्याहे गए परन्तु विश्वासघात करके उन्होंने दौसा और फिर आसपास के बड़गुजरों को वहां से निकालकर स्वयं वहां के राजा बन गए। इस तरह सारे ढूंढाड़ (वर्तमान जयपुर) के स्वामी बन गए। इनके पुत्र काकिलदेव ने वि. सं. 1207 में मीणों से आमेर छीनकर उसे अपनी राजधानी बना ली।
इस वंश के 26वें शासक जयसिंह ने जयगढ़ दुर्ग बनवाया था।
28वें शासक जयसिंह को सवाई की उपाधि से विभूषित किया गया। अतः इनके बाद के सारे शासक सवाई उपाधि धारण करते थे।
यह नरेश बड़े ही विध्वान तथा ज्योतिषी थे। जयपुर नगर इन्ही का कीर्ति स्तम्भ है। यहाँ की वेधशाला के अतिरिक्त इन्होने दिल्ली, मथुरा, उज्जैन और बनारस में पांच वेधशालाएं स्थापित की। सवाई माधोसिंह ने सवाई माधोपुर नगर बसाया था।
1. राजस्थान में जयपुर, अलवर और लावा
2. उड़ीसा में मोरभंज, ढेंकानाल नरलगिरी, बखद के ओंझर
3. मध्यप्रदेश में मैहर
4. उत्तरप्रदेश में जिला सुल्तानपुर में अमेठी, रामपुरा, कछवाहाघार और ताहौर, जिला मैनपुरी में देवपुरा, करोली, कुठोद, कुदरी, कुसमर, खुडैला, जरवा, मरगया, मस्था, जिला जालौन में खेतड़ी, पचवेर, गवार, मालपुरा, मुल्लान, राजपुर, राजोर, वगुरु, सावर आदि।
इसके अतिरिक्त जम्मू और कश्मीर तथा पूँछ की रियासतें।
इनके अतिरिक्त अब ये एटा, इटावा, आजमगढ़, जौनपुर, फर्रुखाबाद। बिहार के भागलपुर, सहरसा, पूर्णाया, मुज़्ज़फ़रपुर आदि जिलों में बस्ते हैं।

नरवर के कछवाहे या नरुके कछवाहे/ राजावत
उदयकर्ण की तीसरी रानी के बड़े पुत्र नृसिंह, जो आमेर के सिंहासन पर बैठे, के वंशज राजावत या नरुके कहलाते हैं। अब ये उ. प्र. के खीरी, लखीमपुर, गोंडा आदि जिलों में तथा नेपाल में कहीं कहीं बस्ते हैं।
रियासतें – अलवर और लावा

शेखावत
आमेर नरेश उदयकर्णजी के छोटे पुत्र बाला को आमेर से 12 गाँवों का बरवाड़ा मिला था। उनके 12 पुत्रों में बड़े मोकल थे और उनके पुत्र थे शेखा जिनसे कछवाहों की प्रसिद्द शाखा शेखावत चली। मोकल को कई वर्षों तक पुत्र नहीं हुआ। उन्होंने कई महात्माओं की सेवा की। चैतन्य स्वामी के दादा गुरु माधव स्वामी के आशीर्वाद से उनके पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम शेखा रखा। इनका जन्म वि. सं. (ई. 1433) में हुआ।

उदयकर्णजी के दूसरे पुत्र बालाजी के पुत्र का नाम राव शेखाजी था। राव शेखाजी के वंशज शेखावत कहलाये। जिला अलवर में ये बड़ी मात्रा में रहते हैं। यह क्षेत्र शेखावाटी भी कहलाता है।
ठिकाने – खेतड़ी, सीकर, मंडावा, मुकुंदगढ़, नवलगढ़।

घोड़ेवाहे कछवाहा-
गोत्र – कश्यप / कोशल्य या मानव्य
प्रवर – कश्यप, वत्सार, नैध्रुव
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजसनेयि, माधयंदिन
सूत्र – पारस्कर, गृहसूत्र
कुलदेवी – दुर्गा
अल्लाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल में आमेर के दो राजकुमार ज्वालामुखी देवी (कांगड़ा) की पूजा करने गए थे। वापसी में वे सेना सहित सतलज नदी के किनारे बैठ गए। बाद में अल्लाउद्दीन ख़िलजी ने इनके 18 लड़कों को एक दिन में उनके घोड़ों की पहुँच तक का क्षेत्र देना मंज़ूर किया। इस तरह इन्होने सतलज रावी नदियों के दोनों ओर और चण्डीगढ से लेकर शेखपुरा बख़नौर (जालंधर) तक के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। घोड़ों की पहुँच तक का क्षेत्र अधिकृत करने से ही ये घोड़े वाले क्षत्रिय कहलाते हैं। चमकौर, बलाचौर, जांडला, राहों, गढ़ शंकर आदि इनके 18 भाइयों की अलग अलग गद्दियां थीं। इनके राजा की उपाधि राय थी। अब ये पंजाब के रोपड़, लुधियाना, जालंधर, होशियारपुर आदि जिलों में बस्ते हैं।

कुश भवनिया (कुच भवनिया) कछवाहे
गोत्र – शांडिल्य
प्रवर – शांडिल्य, असित, देवल
वेद – सामवेद
शाखा – कौथुमी
सूत्र – गोभिल, गृहसूत्र
कुलदेवी – नंदी माता
इसे कुशभो वंश भी कहा जाता है। भगवान राम के पुत्र कुश ने गोमती नदी किनारे सुल्तानपुर में एक नगर बसाया था जिसे कुशपुर या कुशभवनपुर कहते हैं। यहाँ निवास करने के कारण ही ये क्षत्रिय उक्त नाम से प्रसिद्ध हुए। इस क्षेत्र में महर्षि बाल्मीकि का आश्रम आज भी खंडरावस्था में विध्यमान है। जिससे उक्त मत प्रमाणित होता है।
अब ये बिहार के आरा, छपरा, गया तथा पटना जिलों में मिलते हैं।

नन्दबक या नादवाक क्षत्रिय सूर्यवंशी (कछवाह की शाखा)
गोत्र – कश्यप
प्रवर – कश्यप, अप्यसार, नैध्रुव
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजसनेयि, माधयंदिन
सूत्र – पारस्कर, गृहसूत्र
कुलदेवी – दुर्गा

नानरव (अलवर) से कुछ कछवाहे क्षत्रिय उत्तर प्रदेश में जा बसे थे। ये नन्दबक कछवाहे कहलाते हैं। अब ये क्षत्रिय जौनपुर, आजमगढ़, मिर्ज़ापुर तथा बलिया जिलों में बस्ते हैं।

झोतियाना या जोतियाना (झुटाने) कछवाहा की शाखा, सूर्यवंशी क्षत्रिय

गोत्र – कश्यप
प्रवर – कश्यप, अप्यसार, नैध्रुव
वेद – सामवेद
शाखा – कौथुमी
सूत्र – गोभिल, गृहसूत्र
झोटवाड़ा (जयपुर) से आने के कारण ये जोतियाना या झुटाने कहे जाने लगे। मुजफ्फरपुर और मेरठ जिले में इनके २४ गांव हैं।

मौनस क्षत्रिय सूर्यवंशी (कछवाहा की शाखा)
गोत्र – मानव/मानव्य
शेष प्रवर आदि कछवाहों के समान ही है। इनकी 13वीं शताब्दी में आमेर (जयपुर) से आना और मिर्ज़ापुर और बनारस जिलों के कुछ गाँवों में जाकर बसना बतलाते हैं।
अब ये जिला मिर्ज़ापुर, बनारस, जौनपुर तथा इलाहबाद में बस्ते हैं।

पहाड़ी सूर्यवंशी कछवाहे
गोत्र – शोनक
प्रवर – शोनक, शुनक, गृहमद
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजसनेयी, माध्यन्दिन
सूत्र – पारस्कर, गृहसूत्र

कश्मीर के कछवाहा
जम्मू-कश्मीर को स्वतंत्र राज्य बनाने का श्रेय वीर शिरोमणि महाराजा गुलाब सिंह को जाता है। उन्होंने इस सम्पूर्ण प्रदेश को एक सूत्र में बांधकर सिख राज्यकाल में एक छत्र स्वतंत्र शासन किया था। महाराजा गुलाब सिंह के पूर्वज आमेर (जयपुर) के कछवाहा वंश के थे।
मुगलकाल में कश्मीर एक मुसलमान वंश के अधिकार में था। इ 1586 में सुलतान युसूफखां के विरुद्ध आमेर के राजा भगवंतदास को बादशाह अकबर ने भेजा, इन्होने 28 मार्च 1586 इ. सुलतान युसूफखां को लाकर बादशाह के सामने उपस्थित कर दिया। उस आक्रमण में राजा भगवंतदास के साथ उनके काका जगमाल के पुत्र रामचन्द्र भी थे। कश्मीर को साम्राज्य में मिलाकर बादशाह ने रामचन्द्र कछवाहा को कश्मीर में ही जागीर दी तथा नियुक्त किया। इस प्रकार कश्मीर के कछवाहा वंश के रामचन्द्र प्रवर्तक हुए।
रामचन्द्र के पिता जगमाल आमेर नरेश राजा पृथ्वीराज के पुत्र थे। रामचन्द्र ने अपनी कुलदेवी जमवाय माता के नाम पर जम्मू शहर बसाया। यह डोगरा प्रदेश होने के कारण इन्हे डोगरा भी कहा जाने लगा। वैसे ये जगमालोत कछवाहा हैं। रामचन्द्र के बाद सुमेहलदेव, संग्रामदेव, हरिदेव, पृथ्वीसिंह, गजेसिंह, ध्रुवदेव, सूरतसिंह, जोरावरसिंह, किशोरसिंह और गुलाबसिंह हुए।
गुलाबसिंह के बाद रणवीरसिंह, प्रतापसिंह,हरीसिंह और कर्णसिंह कश्मीर के शासक हुए। भारत के स्वतंत्र होने के बाद कर्णसिंह को कश्मीर का सादर ए रियासत बनाया गया। इसके बाद कर्णसिंह केंद्रीय मंत्री परिषद में स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्रित्व काल में मंत्री रहे। ये बड़े विद्वान हैं और इन्होने कई किताबें भी लिखी है !

#अयोध्या_का_आमेर_ढूंढाङ_की_अयोध्या
गढ़ आमेर राज सवाया
वंशज श्री राम के कुशवाहा रघुकुल तिलक कहलाया
क्षत्रिय सिरमौर कछवाहा कुल..जयपुर राज सवाया
कुलदेवताअंबिकेश्वर का आसरा
कुल देवी जमवाय जी की छत्रछाया
#कुश के बाद उनसठवी ५९ पीढ़ी में अयोध्या के अंतिम राजा सुमित्र के ज्येष्ठ पुत्र का नाम कुर्म था …. अतः उसके वंशज कुर्म कहलाये …कुर्म के कच्छव थे …सो उनके वंशज कछवाहा कहलाये … ( राजधानी साहित्य एवं शिलालेखों में कछवाहा क्षत्रियों के लिए कुर्म शब्द का प्रयोग कई स्थलों पर मिलता है )

#ग्वालियर और दुब कुन्ङ पर पूर्व में कछवाहा क्षत्रियों का शासन था ..जिनके वंशज ही सर्व प्रथम राजस्थान में आये तथा दौसा एवं आमेर को जीतकर अपना राज्य स्थापित किया था….!!

#प्रारंभिक युग से ही ढुढाड़ का कछवाहा वंश इतिहास अत्यंत गौरवशाली माना जाता है…..राजपूताना के लिए अपितु अखंड भारत के सनातन धर्म की रक्षा के लिए हमेशा कटिबंध रहा है… इस वंश का शौर्य.. साहस ..पराक्रम.. धैर्य.. दृढ़ता.. निष्ठा..न्याय.. चातुर्य बल वीरता.. स्वातंत्रय प्रेम तथा स्वदेश स्वाभिमान अपनी चरमोत्कृष्टता पर पहुंच गया था….!!

आज आप सभी को इसके स्वर्णिम इतिहास से आप सभी मित्रों को अवगत करवायेगें…..वर्तमान में भगवान रामचंद्र जी की मुख्य गद्दी आमेर ढुढाढ़ मे स्थित है… यह ओजस्वी.. पराक्रमी पराकाष्ठा..बलशाली..वभैवशाली.. सघर्षो से आज आमेर मे विराजित है…..!!

कुलदेवी माता जमुवाय को नमनः करते हुऐ … हम आगे अपने पूजनीय पुर्वज का आदरपूर्वक वर्णन करते हैं..
वंशक्रम
भगवान श्री राम..कुश..अथिति..विरसेन..नल ..ढोला (सालहकुमार) लक्ष्मण..वज्रधामा.. मंगलराज.. किर्तीराज.. मधुब्राह्म..कानदेव..देवानिक..ईशासिहं..सोढ़देव..दुल्हेराय..काकिलदेव..हणुदेव..जाहणदेव..पजवंनदेव..मैलसीदेव..विजलदेव..राजदेव..किल्हणदेव..कुन्तलदेव..जुणसीदेव..उदयकर्ण..नरसिंह देव..बनबीर सिहंजी..राजा उध्यरणराव..चन्द्रसेन राव..पृथ्वीराज सिहंजी..पूरणमल..भीमसिंहजी..रतनसिंह..आसकरणजी..भारमलजी..भंगवंतदास..राजामानसिहं जी( प्रथम) भावसिहं जी..मिर्जा राजा जयसिंह जी (प्रथम) ..रामसिंह जी (प्रथम) विष्णु सिहंजी (विशनसिंह) सवाई जयसिंह (ध्दितिय)..सवाई ईश्वरीय सिहंजी..सवाईमाधोसिहंजी (प्रथम) सवाई पृथ्वीसिंह जी..सवाईप्रतापसिहंजी..सवाईजयसिहंजी(तृतीय)..सवाईरामसिहंजी..सवाईमाधोसिहंजी (ध्दितिय)..सवाईमानसिंह (ध्दितिय) सवाईभवानीसिहंजी अन्तिम महाराज (जयपुर)

नरवर के शासक सोढदेव जी के पुत्र दुल्हेराय जी का विवाह राजस्थान में मोरागढ के चौहान शासक रालणसिंह चौहान की पुत्री सुजान कुँवर से हुआ था.. दौसा का राज्य चौहान और बढगुर्जरों में आधा-आधा विभक्त था..और दोनो राजवंशों में आपस में अनबन थी…!!

दोनो एक दुसरे का हिस्सा दबाने पर उतारू थे…इसी कडी मे बडगुर्जरों ने चौहानों के 50 गांवों पर कब्जा कर लिया था ..तब चौहानों ने दूलहराय जी को संदेश भेजा कि यदि आप राजस्थान में पधार जायें तो हम हमारा दौसा का आधा राज्य आप को दे देगें.. तथा बडगुजरों से आधा हिस्सा अधिकृत करने में आपकी सब तरह से मदद करेगें ..दुलहराय जी मध्यप्रदेश से यंहा आए और चौहानों की मदद से दौसा पर कब्जा कर लिया…!!

बडगूजरों में देवती का का राजा प्रमुख था.. बडगुजरों ने देवती जाकर पुकार की.. देवती सेे सेना चढकर आई..जिसे दुलहराय जी ने परास्त कर दिया था…!!

उस समय दौसा के आसपास मीणा लोगो के कई छोटे मोटे कबिले थे…जिनका मुखिया आमेर का था…दुल्हेराय ने सबसे पहले भाण्डारेज के मीणा को हरा कर उसे अधिकृत कर लिया.. दौसा में राज्य स्थापित कर दुल्हेराय जी ने अपने पिता सोढदेव और रानीयों को दौसा बुला लिया….!!

सोढदेव जी ने भी अपना राज्य बरेली और रामपुरा वाले अपने छोटे भाई पृथ्वीसिंह के पुत्र इन्द्रमणि को दे दिया और स्वयं दौसा आ गए…!!

भाण्डारेज के मीणा राज्य को जीतने के बाद दूल्हेराय जी ने मांच के मीणा नाथू से मुकाबला किया..इस युद्ध मे कछवाहों को बहुत नुकसान झेलना पडा तथा कई योद्धा युद्ध में वीरगति प्राप्त हुए.. दुल्हेराय जी स्वयं इस युद्ध में भयंकर रूप से घायल होकर घोडे से गिर पडे और मुर्छित हो गए…!!

चेतना होने पर उन्होने कुलदेवी का आह्वान किया..सौभाग्य से उसी वक्त कुलदेवी एक गाय के साथ प्रकट हुई और उन्होने दुल्हेराय जी से कहा कि इस गाय का दुध दुहकर के पास ही खडे बरगद के पेड के पत्तो में भरकर समस्त सेना पर छिडको.. जिससे कछवाहा सेना फिर से स्वस्थ (युद्ध में जख्मी हुए सैनिक) हो जाएगी उसके बाद तुम युद्ध करना तुम्हारी विजय अवश्य होगी…!!

दुल्हेराय जी ने ऐसा ही किया तथा कुलदेवी जमुवाय के आदेशानुसार पुन: आक्रमण किया गया.. इस अप्रत्याशित आक्रमण से मीणे हतप्रभ हो गए तथा दुल्हेराय जी ने मांच पर अधिकार कर लिया और उस राज्य का नाम बदलकर अपने पूर्वज राम तथा कुलदेवी जमवाय के नाम पर जमवा रामगढ रख दिया.. तब से कछवाहा वंश मे गौ माता और बरगद के पेड का महत्व बहुत बढ़ गया.. आज भी जंहा पर कछवाहा राजपूत निवास करते है ..वंहा किसी ना किसी रूप में उनके पास बरगद का पेड और गौ माता उपस्थित रहती ही है….!!

दुल्हेराय जी जिस स्थान पर मुर्छित होकर गिरे थे.. और उन्हे माता जमुवाय ने दर्शन दिए थे…उन्होने वही एक छोटी देवली बनाकर उसमें जमवाय माता की मुर्ति स्थापित कर दी.. यंहा पर कछवाहों के जाये-जन्में.. परणों की आज भी जात लगती है…मंदिर में एक मूर्ति माता जमुवाय ..दुसरी मूर्ति माता बुडवाय की तथा तीसरी मुर्ति एक गाय तथा उसके बछडे की है….!!

( कुलदेवी जमवाय माता सतयुग में मंगलाय..त्रेतायुग में हडवाय (भगवान राम की कुलदेवी) द्वापरयुग में बुडवाय तथा कलयुग में जमवाय के रूप में पूजित है )

मांच को जीतकर दुल्हेराय जी ने अपनी राजधानी दौसा से मांच(जमवारामगढ) बना ली जिसके किले के ध्वंसावशेष आज भी जमवारामगढ के पुराने स्थान पर मौजूद है….यंहा पर बडगुजरों का खतरा अभी तक बना हुआ था.. इसलिए दुल्हेराय जी ने फिर से बडगुजरों पर हमला करके उनको परास्त किया तथा उनके दो किलो को अपने अधीन कर लिया था…!!

बडगुजरों पर विजय के बाद दुल्हेराय जी ने वापस मीणों के उपर हमला किया… पहले उन्होने चांदा वंश के मीणा आलणसी को हराकर खोह पर अधिकार कर लिया फिर मीणों के गेटोर.. झोटवाडा.. आदि नाढला वंश के राज्य भी विजित किए…!!

दुलहराय जी ने खोह जीतने के बाद रामगढ से अपनी राजधानी खोह को बना लिया…शक्तिशाली मीणों को हराने के कारण दुल्हेराय जी की ख्याति सर्वत्र फैल चुकी थी.. क्योकि उस समय किसी राजपूत वंश ने मीणों से सीधे भिडने की हिम्मत नही की थी…किन्तु दुल्हेराय कछवाहा ने उनके राज्यों का समुल नाश कर दिया था….!!

इसी समय दुल्हेराय जी के पैतृक राज्य ग्वालियर पर किसी दुश्मन ने हमला कर दिया था… दुल्हेराय जी अपने भाईयों की मदद के लिए ग्वालियर पंहुचे…वंहा विजय कछवाहों की रही ..किन्तु दुलहराय जी युद्ध में अत्यधिक घायल हो गए..उनहीं घावों के कारण माघ सुदी 8 वि. 1192 जनवरी 28 ई. को उनका देहान्त हो गया…दुल्हेराय जी का देहान्त होने के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र कांकल देव जी कछवाहा खोह की गद्दी पर विराजमान हुए….!!

राजा इसदेव कछवाहा नरवर के पुत्रों से बनी शाखा निम्न है
राजा इसदेव कछवाहा इनके दो पुत्र हुए
1. राजा सोढदेव कछवाहा 2. राजा पृथ्वीसिंह कछवाहा :- उत्तरप्रदेश में अमेठी राज्य की स्थापना की….!!

राजा सोढदेव कछवाहा..इनके एक पुत्र हुआ
1. राजा दुल्हेराय कछवाहा :- खोह के राजा..इनके तीन पुत्र हुए
1.राजा कांकलदेव कछवाहा..खोह के राजा बने….
2. राजा डेलणजी कछवाहा..इनसे कछवाहों की डेलणोत शाखा का जन्म हुआ…
3. राजा बिकुलदेव कछवाहा.. इनके वंशज बिकलपोता कछवाहा कहलाए… जो इन्द्रुखी से बिस्वारी तथा बिस्वारी से लाहर होते हए
रामपुरा पंहुचे…वंहा पर किले की स्थापना करके..रामपुरा जागीर की स्थापना की…उस समय इनके हिस्से में 48 गांव आते थे… जालोन..इटावा..औरय्या आदि इनके कछवाहा भाई-बन्धुओ की जागीरे रही…..1619 मे राजा जसवंत सिंह जी कछवाहा नें 52 गांवो की एक जागीर जालोन जिले में प्राप्त की थी…!!

सहयोगकर्ता …हुकुम बाघसिंह जी पुरणम्लौत ठि.सनवाड़ फोर्ट
भंवर दिव्य प्रताप सिंह कुम्भाणी ठि. कचनारा
कुँ मान प्रताप सिंह किल्याणोत ठि. गढ़धवान
साभार…
कुँ मान प्रताप सिंह किल्याणोत ठि.गढ़धवान
इन्ही आमेर के आठवें महाराज पृथ्वीराज जी आमेर के वंशज कच्छवाहा कुल वीर कालवाड़ नरेश कल्याण सिहं जी (कल्याणदासजी) के वटवृक्ष कछवाहा किल्याणोत हैं

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