“नई आवाज़” की ओर से अंतर्राष्ट्रीय मुशायरा व पुरस्कार समारोह आयोजित
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इस कार्यक्रम की अध्यक्षता “नई आवाज़” के संरक्षक डॉ. एस. फारूक ने की और मुशायरे का उद्धघाटन दिल्ली मेट्रो के पुलिस उपायुक्त जितंद्रे मणि त्रिपाठी ने पारंपरिक तरीके से मोमबत्ती जलाकर किया।
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नई दिल्ली: दिल्ली के एक साहित्यिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधि संगठन “नई आवाज़” की ओर से अंतर्राष्ट्रीय मुशायरा व पुरस्कार समारोह तस्मिया सभागार, जामिया नगर नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता “नई आवाज़” के संरक्षक डॉ. एस. फारूक ने की। जबकि हाजी फजलुर रहमान, सांसद (सहारनपुर) मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित थे और इकबाल अजार, पूर्व महाप्रबंधक, उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड विशिष्ट अतिथि थे। मुशायरे का उद्धघाटन दिल्ली मेट्रो के पुलिस उपायुक्त जितंद्रे मणि त्रिपाठी ने पारंपरिक तरीके से मोमबत्ती जलाकर किया।
“नई आवाज़” के अध्यक्ष राशिद हामदी, संस्थापक महासचिव एजाज अंसारी, संयोजक हामिद अली अख्तर और अन्य ने सभी मेहमानों का गुलदस्ता और उपहारों के साथ गर्मजोशी से स्वागत किया। इस अवॉर्ड समारोह में सुंदर ट्राफियां, प्रमाण पत्र, शॉल और मुहब्बत का उपहार “नई आवाज़” अवार्ड-2021 वहां मौजूद अतिथियों को दिया गया। । विवरण निम्नानुसार है। जावेद सिद्दीकी (कविता के लिए दुबई), नदीम अख्तर (निदेशक, दिल्ली पुलिस पब्लिक लाइब्रेरी), सऊद अहमद (देवबंद), डॉ सैयद तनवीर अहमद, सोहेल सिद्दीकी, अहमद अशरफ, अब्बास अली और मदन लाल गर्ग को राष्ट्रीय एकता के लिए अवॉर्ड दे कर सम्मानित किया गया।
इसके अलावा इस अवसर पर न्यू गवर्निंग काउंसिल उर्दू अकादमी, दिल्ली के सदस्यों में पतकार जावेद रहमानी, रफत अली जैदी, मुन्ने खान और रुखसाना खान को भी शॉल और मुहब्बत के उपहार देकर इन सभी का स्वागत किया गया।
इस अवसर पर जिन कवियों ने अपना कलाम प्रस्तुत किया है उन कवियों के नाम इस प्रकार से हैं। डॉ. आरीफा शबनम, राशिद हामदी, एजाज अंसारी, जितेंद्र मणि त्रिपाठी, डॉ. साजिद सैयद, काशिफ रजा, अजीम देवासी, सोहैब फारूकी, सालीम सलीम, अल्तमश अब्बास, आशकारा खानम काशफ, जावेद सिद्दीकी, अब्दुल जब्बार शारब, दिलशेर दिल, अजयअक्स, समर बछरायोंनी और मदन लाल गर्ग।- यहां पाठकों के लिए चयनित कविताएँ पेश हैं:
मैंने कोई सूरज या तारा नहीं देखा है
किस रंग का होता है उजाला नहीं देखा
(आरिफा शबनम)
हाकिम ए वक्त को मालूम नहीं है शायद
जुल्म बढ़ता है तो सरकार भी गिर जाती है
(एजाज अंसारी)
चंद बूंदे अभी बाक़ी हैं रग ए बिस्मिल में
अब किसी और तमाशे की ज़ररत है क्या
(राशीद हामदी)
मैं जुगनू हूं मगर ये अजम लेकर जगमगाता हूं
अंधेरी रात का मलबूस मुझ को चीर देना है
(इकबाल आज़र)
आदमी तो ठीक से वह बन नहीं पाया मगर
जी में क्या आया खुदा होने का दावा कर दिया
(जितेंद्र मणि त्रिपाठी)
अगर जारी रहा ये मशगला बनने सवरने का
तुम्हारे हुस्न को एक रोज़ आईना पकड़ लेगा
(सालीम सलीम)
दिलों के राज स्पूर्द हुआ नही करते
हम अहल ए दिल हैं तमाशा नहीं करते
(सोहैब फारूकी)
मैं दिल से लड़ के मुहब्बत की जंग जीत गया
अगर दिमाग से लड़ता तो हार सकता था
(काशिफ रजा)
नहीं है अपनी खबर क्या किसी की फिकर करूं
सफर ए ईश्क हूं सुबह व शाम वज्द में हूं
(अल-तमश अब्बास)
मैं भी रसमन सलाम करता हूं
दिल से वह भी दुआ नही देते
(जावेद सिद्दीकी)
सुखन शनास कहेंगे मुझे ग़ज़ल परवर
अब मैं इस कमाल की हद से निकल चुकी हूँ मैं
(आशकारा खानम कशफ)
मैंने जब तौबा की जाम ठुकरा दिया
तिश्नगी मेरा मुंह देखती रह गई
(अब्दुल जब्बार शारिब)
हर एक सख्ती राह की झल लूंगा
अगर तुम चलो मेरे शाना बशाना
(हामिद अली अख्तर)
ये दुनियां राम और रहीम को मिलने नही देगी
यह ऐसा मसला है जो कभी हल हो नहीं सकता
(अजय अक्स)
मुद्दतों कहते रहे जो लोग दीवाना मुझे
खुद ही पागल हो गए जिस रोज़ पहचाना मुझे
(समर बछरायोनी)
तमन्ना है कि छू लूं आसमां के इन सितारों को
खुदा कुवत अता कर दे मेरी परवाज़ में इतनी
(दिलशेर दिल)
मुट्ठी से सब रेत निकल गई, अब क्यों कर तू पछताए
चिड़िया चुक गई खेत जो सारा, अब क्यों बैठा अश्क बहाए
(मदन लाल गर्ग)
अंत में संयोजक मुशायरा हामिद अली अख्तर ने अतिथियों, कवियों और श्रोताओं को धन्यवाद दिया और “नई आवाज़” के संरक्षक डॉ. फारूक की ओर से सभी को खाने के लिए आमंत्रित किया।




