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भागवत पढ़ने से आने वाली पीढ़ी भी संस्कारी हो जाएगी- पं.नीरज नयन शास्त्री

गोवर्धन पूजा के दौरान भगवान को लगाया छप्पन भोग

दतिया । धनवान व्यक्ति वही है जो अपने तन, मन, धन से सेवा भक्ति करे। परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम के द्वारा ही संभव हो सकती है। आज कल की युवा पीढ़ी अपने धर्म अपने भगवान को नही मानते है, लेकिन तुम अपने धर्म को जानना चाहते हो तो पहले अपने धर्म को जानने के लिए गीता, भागवत ,रामायण पढ़ो तो, तुम नहीं तुम्हारी आने वाली पीढ़ी भी संस्कारी हो जायेगी। उक्त कथन श्राद्ध पक्ष में पितृ शांति हेतु आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें  दिन भगवान श्रीकृष्ण जन्म का प्रसंग सुनाते हुए पं. नीरज नयन शास्त्री ने श्रद्धालुओं के बीच कही।

कथा के पांचवे दिन कथाव्यास पं. शास्त्री ने पूतना वध, माखनचोरी लीला, श्री कृष्ण की बाल लीलाओं सहित गोवर्धन पूजा के प्रसंगों का वर्णन किया। पूतना चरित्र का वर्णन करते हुए कथावाचक ने कहा कि भगवान कृष्ण के पैदा होने के बाद कंस उनको मौत के घाट उतारने के लिए अपनी राज्य की सर्वाधिक बलवान राक्षसी पूतना को भेजता है। पूतना वेश बदलकर भगवान श्रीकृष्ण को अपने स्तन से जहरीला दूध पिलाने का प्रयास करती है। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण उसको मौत के घाट उतार देते हैं।

उन्होंने आगे की कथा में बताया कि पृथ्वी ने गाय का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को पुकारा तब श्रीकृष्ण पृथ्वी पर आये हैं। इसलिए वह मिट्टी में नहाते, खेलते और खाते हैं ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सकें। गोपबालकों ने जाकर यशोदामाता से शिकायत कर दी–’मां तेरे लाला ने माटी खाई है यशोदामाता हाथ में छड़ी लेकर दौड़ी आयीं। ‘अच्छा खोल मुख।’ माता के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोल दिया। श्रीकृष्ण के मुख खोलते ही यशोदाजी ने देखा कि मुख में चर-अचर सम्पूर्ण जगत विद्यमान है। यह देख बड़ा विस्मय हुआ यशोदा माता को। श्री कृष्ण ने देखा कि मैया ने तो मेरा असली तत्त्व ही पहचान लिया है। श्री कृष्ण ने सोचा यदि मैया को यह ज्ञान बना रहता है तो हो चुकी बाललीला, फिर तो वह मेरी नारायण के रूप में पूजा करेगी। न तो अपनी गोद में बैठायेगी, न दूध पिलायेगी और न मारेगी। जिस उद्देश्य के लिए मैं बालक बना वह तो पूरा होगा ही नहीं। यशोदा माता तुरन्त उस घटना को भूल गयीं।

गोवर्धन पूजन के प्रसंग के दौरान कथाव्यास ने कहा कि किसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने भगवान इंद्र के घमंड को चूर करने के लिए बृजवासियों को गिरिराज की पूजा करने के लिए प्रेरित किया। कार्तिक माह में ब्रजवासी भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजन का कार्यक्रम करने की तैयारी करते हैं। भगवान कृष्ण  के द्वारा उनको भगवान इंद्र की पूजा करने से मना करते हुए गोवर्धन महाराज की पूजा करने की बात कहते हैं। इंद्र भगवान उन बातों को सुनकर क्रोधित हो जाते हैं। वह अपने क्रोध से भारी वर्षा करते हैं। जिसको देखकर समस्त ब्रजवासी परेशान हो जाते हैं। भारी वर्षा को देख भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर पूरे नगरवासियों को पर्वत को नीचे बुला लेते हैं। जिससे हार कर इंद्र एक सप्ताह के बाद वर्षा को बंद कर देते हैं। जिसके बाद ब्रज में भगवान श्री कृष्ण और गोवर्धन महाराज के जयकारे लगाने लगते हैं। इस मौके पर गोवर्धन भगवान को छप्पन भोग लगाया गया।

इस दौरान संगीतकार के रूप में मनोज शुक्ल,विशाल समाधिया,पवन गोस्वामी, शिवम श्रीवास्तव, विशाल पाठक साथ रहे। आचार्यत्व पं. कमलकांत तिवारी ने किया उनके साथ बिहारी जी मंदिर के पुजारी पं नमन गोस्वामी मौजूद रहे। कथा पंडाल में मुख्य रूप से नीरज गुप्ता,नयन गोस्वामी, हरिमोहन गुप्ता,राजू साहू, देवेंद्र, कुणाल पांडे, अमित दीक्षित उपस्थित रहे।

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