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16 दिनों में श्राद्ध करने से पितृ तृप्त रहते हैं – पं. नीरज नयन शास्त्री

दतिया । हमारा सौभाग्य है कि श्राद्ध पक्ष के पावन अवसर पर  ठाकुर श्री बिहारी जी चरणों मे बैठकर भगवान की कथा का स्मरण कर रहे है और अपने पितरों का चिंतन करते हुए श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर रहे है। पूरे वर्ष श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करना चाहिए । बर्ष भर अगर श्राद्ध नही कर सकते तो इन 16 दिनों में श्राद्ध करने से पितृ तृप्त रहते हैं और उनकी प्रसन्नता से वंशजों को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, सुख एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्राद्ध में श्रद्धा का सर्वाधिक महत्व है।पितृपक्ष में पितरों के निमित्त भागवत पुराण कथा कराएं।भागवत कथा सुने।गोकर्ण जी ने धुंधकारी की मुक्ति के लिए भागवत कथा का आयोजन किया था। उक्त कथन पं. नीरज नयन शास्त्री ने पितृ शांति हेतु श्राद्ध पक्ष में ठा. श्री बिहारी जी मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कही।

कथा व्यास पं. नीरज नयन शास्त्री ने  भागवत कथा का रसपान कराते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत 18000 श्लोकों की पावन पुराण है जो 12 स्कन्धों और 365 अध्यायों में समाहित है। सभी पुराणों के प्रारंभ में किसी न किसी देवता की वंदना की गई है लेकिन श्रीमद्भागवत में किसी देवता का नाम लेकर वंदना नही की गई भागवत कथा में सत्य की वंदना की गई।

उन्होंने कथा के दूसरे दिन राजा परीक्षित संवाद, शुकदेव जन्म सहित अन्य प्रसंग सुनाया। कथा व्यास पं. शास्त्री ने शुकदेव परीक्षित संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार परीक्षित महाराज वन में चले गए। उनको प्यास लगी तो समीक ऋषि से पानी मांगा। ऋषि समाधि में थे, इसलिए पानी नहीं पिला सके। परीक्षित ने सोचा कि साधु ने अपमान किया है। उन्होंने मरा हुआ सांप उठाया और समीक ऋषि के गले में डाल दिया। यह सूचना पास में खेल रहे बच्चों ने समीक ऋषि के पुत्र को दी। ऋषि के पुत्र ने शाप दिया कि आज से सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से राजा की मृत्यु होगी। समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित हैं और यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है। समीक ऋषि ने जब यह सूचना जाकर परीक्षित महाराज को दी तो वह अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंपकर गंगा नदी के तट पर पहुंचे। वहां बड़े ऋषि, मुनि देवता आ पहुंचे और अंत में व्यास नंदन शुकदेव वहां पहुंचे। शुकदेव को देखकर सभी ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। कथा सुनकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए।

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